लक्ष्मी-प्यारे का संगीत सागर :: प्यारेलालजी की वायोलिनसे निकले गीतों के मोती
३ सितम्बर लिविंग लीजेंड, हिंदी फिल्म संगीत सबसे लोकप्रिय और सबसे सफलतम संगीत दिग्दर्शक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के, प्यारेलालजी का जनमदिन है.
प्यारेलालजी का जन्म ३ सितम्बर, १९४० में मुंबई में हुआ. प्यारेलालजी के पिताजी पंडित रामप्रसाद शर्मा नामांकित ट्रम्पेट प्लेयर थे और संगीत शिक्षक थे. संगीत की प्रम्भारिक शिक्षा प्यारेलालजी ने अपने पिताजी से प्राप्त की. ववेस्टर्न संगीत के नोट लिखना और वायलिन। बाद में प्यारेलालजी ने सुप्रसिद्ध वायोलिन वादक और शिक्षक, गोवा के श्री अन्थोनी गोंसाल्विस से वायोलीन की शिक्षा प्राप्त की. केवल आठ साल के उम्रमें प्यारेलालजी ने वायलिन में निपुणता हासिल कर ली.

बाद में ‘अमर अकबर अन्थोनी, १९७७, में अपने गुरु अन्थोनी गोंसाल्विस को “माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विस” गीत द्वारा प्यारेलालजी ने अपने वायलिन शिक्षक को श्रद्धांजलि दी.
घरके हालात ठीक नहीं थे. ऐसे में उंहोने पैसे कमाने के लिए चर्चमें वायोलीन बजाना चालू किया।

लता मंगेशकर के छोटे भाई पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, जो के प्यारेलालजी के हमउम्र थे, उन्होंने प्यारेलाल जी के पीताजिसे संगीत सीखना चालू किया। उन्ही दिनों प्यारेलाल और पंडित हृदयनाथ मंगेशकर अच्छे दोस्त बन गए..

पंडित हृदयनाथ मंगेशकर ने अपने ही घरमे एक संगीत अकादमी शुरू की और उसका नाम रखा “सुरीला बाल केंद्र”. उस अकादमी में हृदयनाथजी के अलावा उनकी बहने मीना मंगेशकर और उषा मंगेशकर , प्यारेलालजी, उनके छोटे भाई गणेश, गोरख, आनंद, महेश, नरेश इत्यादि लोग थे. १० साल के उम्रके प्यारेलाल (छोटे संगीतकार) और बाकि बालक सब के सब लता मंगेशकर के घर में रहना, खाना और संगीत बजाना।
थोड़े ही दिनोंमें भारत रत्न लता मंगेशकर ने एक कॉन्सर्ट में लक्ष्मीकांत को मेंडोलिन बजाते सुना। लताजी ने दोनों भाइयों लक्ष्मीकांत और शशिकांत की शंकर-जयकिशन, नौशाद और सी रामचंद्र के पास शिफारस की. साथ ही लताजी ने लक्ष्मीकांत और उनके बड़े भाई शशिकांत को “सुरीला बाल केंद्र” में भेज दिया।
वहींसे शुरू हुआ प्यारेलाल जी और लक्ष्मीकांत जी के लम्बी “दोस्ती” सिलसिला। वहींसे याने की लता मंगेशकर जी के घर से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के “नाम “ का उदय हुआ. फिर क्या हुआ सब लोग जानते हे। १९६३ से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (१९६३ – १९९८) के नाम का एक युग की शुरुआत हुई।
503 फिल्में, 160 गायक, 72 गीतकार, 2845 गाने। बॉलीवुड संगीत में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का जबरदस्त योगदान।
प्यारेलालजी ने एक वायलिन वादक के रूप में, संगीतकार के बुलो सी रानी, नौशाद, मदन मोहन, सी रामचंद्र, खय्याम, चित्रगुप्त और एस डी बर्मन के साथ काम किया है।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के अधिकांश गानों के ऑर्केस्टेशन में वायोलीन को प्रमुखता दी गयी हे. एकल भी और ग्रुप वायोलिन भी. ग्रुप वायोलिन में ४० से भी ज्यादा वायोलिन का होना जरूरी था. अधिकांश गानो में वायोलिन को सिम्फनी स्टाइल मे बजाया गया है, जो गाानो को वेस्टर्न टच देता है. ८०% गाने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने ग्रुप वायोलिन्स का उपयोग किया है।
प्यारेलालजी के कान इतने तीक्ष्ण है की अगर १०० की संख्या के ऑर्केस्ट्रा में अगर कोई गलती करता है तो उसे तुरंत भाप लेते है.
इस ब्लॉग के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ऑर्केस्ट्रा में वायोलिन के उपयोग को उजागर किया है.
१) सोलो (एकल) वायोलिन जो प्यारेलालजी ने खुद बजाया है. इस श्रेणी में सिर्फ दो गाने है.
२) सोलो (एकल) वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
३) ग्रुप वायोलिन्स का सिम्फनी स्टाइल में खूबसूरत प्रदर्शन।
४) लता मंगेशकर के कहने पर प्यारेलालजी द्वारा लिखी गयी सिम्फनी जो जर्मन म्यूज़िसिअन्स ने बजाई।
सोलो (एकल) वायोलिन और प्यारेलालजी
मैं यह सोचकर … मोहम्मद रफ़ी >>> “हकीकत” १९६४
संगीतकार मदन मोहन गीतकार कैफ़ी आज़मी
संगीतकार मदन मोहन जी ने जब ये गाना बनाया तो वो चाहते थे की प्यारेलालजी ही वायोलीन बजाये। लेकिन समस्या ये थी की लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल स्वंतत्र रूप से संगीत देने लगे थे. मदन मोहनजी सोच में पड गए और कह दिया की अगर प्यारेलालजी वायोलिन नहीं बजाते तो वो ये गाना फिल्म्से निकाल देंगे। लेकिन प्यारेलालजी ने जैसेही सुना तो वह मदन मोहनजी की इच्छा के अनुसार वायोलिन बजाने पहुँच गए.
ये गाना नहीं बल्कि ये के जुगलबंदी है, वो भी मोहम्मद रफ़ी के आवाज की और प्यारेलालजी के वायोलिन की. रफ़ी साहब की हर एक लाइन गाने के बाद प्यारेलालजी का वायोलिन बजता है. .
जब जब बहार आयी। …… मोहम्मद रफ़ी “तक़दीर” १९६७
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
पूरा का पूरा गाना वायोलिन (एकल) पर केंद्रित है. इस गाने मैं भी प्यारेलालजी ने वायोलिन बजाया है. वायोलिन के साथ पियानो भी बेहतरीन तरीकेसे बजाय गया है. कर्णप्रिय ढोलक ‘rhythm’
सोलो (एकल) वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
मेरा नाम है चमेली। ..लता मंगेशकर। …”राजा और रंक” १९६८
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
ढोलकी’ पर बेहतरीन गीतों में से एक. पहली और तीसरे इंटरलूड में वायोलिन और रावणहत्ता (राजस्थानी वायोलिन ) के साथ वायोलीन ” के साथ। पहला “विराम” 39 वें सेकंड के अंत में “प्रस्तावना” में सुना जा सकता है जो वायलिन से भरा है और “ढोलकी” के साथ है। यह गीत अभिनेत्री कूमकूम पर फिल्माया है.
हाय शरमाऊं किस किस को बताऊँ। .. लता मंगेशकर “मेरा गाव् मेरा देश” १९७१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
75 सेकंड के प्रील्यूड ने शो को चुरा लिया, इसे वायलिन, रावणहट्टा (राजस्थान का एक वायलिन), रुबाब घुंघरू बेल्स और मैंडोलिन के अद्भुत प्रदर्शन के साथ-साथ ढोलक ताल, सुनने वालो को मंत्रमुग्ध करता है. तीनो इंटरलूड में वायोलिन और रावणहट्टा (राजस्थान का एक वायलिन) अच्छे तरीकेसे ऑर्केस्ट्रा में बजता है.
इस गाने को फिल्माने के लिए राज खोसला ने बेहतरीन काम किया है।यह गाना अभिनेत्री लक्ष्मी छाया, धर्मेंद्र और विनोद खन्ना पर फिल्माया है.
एक प्यार का नगमा है। ..लता मंगेशकर – मुकेश। “शोर” १९७२
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार संतोष आनंद
सोलो (एकल ) और ग्रुप वायोलिन्स। इस गीत के तीन संस्करण हैं. पहले संस्करण का विश्लेषण किया गया है।
46 सेकंड के आकर्षक “प्रील्यूड” में सोलो वायोलिन्स और लताजी की गुनगुनाहट से शुरुआत से होती है. फिर से एकल वायलिन और संतूर के “स्ट्रोक” के साथ समाप्त होता है। लता जी :: एक प्यार का नगमा है। बोंगो ड्रम ‘लय’ शुरू होता है। लता जी का सुर / गाना, पूरे गीत में सिम्फनी शैली की वायलिनों से घिरा हुआ है। तीनो इंटरलूडस में सोलो और ग्रुप वायोलिन्स का और इंटरलूड की शुरुआत एकल वायलिन, लताजी के कानों को भाते हुए गुनगुनाहट से होती है। सोलो वायोलिन, गोवा के मि. जेरी फर्नांडिसने बजाया है.
आदमी जो कहता है ….किशोर कुमार “मजबूर” १९७४
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए अभूतपूर्व “लॉन्ग प्रील्यूड” के साथ गीत को सजाने की एक सामान्य प्रथा थी।
144 सेकंड का प्रस्तावना। संगीत निर्देशकों लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए अभूतपूर्व “लॉन्ग प्रील्यूड” के साथ गीत को सजाने के लिए एक सामान्य प्रथा थी। लंबे प्रील्यूड के साथ, लक्ष्मी-प्यारे द्वारा रचित कई गीत हैं।
माय नेम इज अन्थोनी गोंसाल्विस। ..किशोर कुमार। “अमर अकबर अन्थोनी” १९७७
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
दूसरा इंटरलूड में सोलो वायोलिन सुनने लायक.
दर्द-ए-दिल दर्दl-ए-जीगर …किशोर कुमार ..क़र्ज़ १९८०
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
पूरा का पूरा गाना सोलो वायलीन और ग्रुप वायसे सुशोभित है. इस गाने को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा पर केंद्रित किया है। .. अमर हल्दीपुर ने सोलो वायोलिन बजाया है.
शबनम का कतरा। ..लता मंगेशकर। “शरारा” १९८४
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
लता मंगेशकर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से सुंदर वाल्ट्ज एक सरासर जादू। 98 सेकंड का प्रील्यूड, एकल वायलिन से भरपूर और लताजी द्वारा प्रस्तुत आलप और हमिंग। तीसरा इंटरलूड एकल वायोलिन।
काटे नहीं कटते ये दिन मी इंडिया किशोर कुमार – अलीशा चिनॉय
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार जावेद अख्तर ।
दूसरा इंटरलूड सोलो वायोलिन सुनना मत भूलिये।
धड़कन ज़रा रूक गयी है। ..सुरेश वाडकर ….. “प्रहार” १९९१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार मंगेश कुलकर्णी
एक और वाल्ट्ज़ rythm “प्रील्यूड”, ‘इंटरलूड’ और ‘पोस्टल्यूड’ में भी एक शानदार रचना, गुंजयमान ऑर्केस्ट्रा व्यवस्था। पहले ‘इंटरल्यूड’ में एकल वायलिन (स्वर्गीय आदेश श्रीवास्तव द्वारा अभिनीत) को सेल्लो की सराउंड साउंड के साथ आश्चर्यजनक रूप से सिंक्रनाइज़ किया गया है।
ग्रुप वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
ऑर्केस्ट्रा में १०० से अधिक वायोलिन्स का उपयोग
बहोश-ओ-हवास मैं दीवाना…..मोहम्मद रफ़ी “नाईट इन लंदन” १९६७
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
सिम्फनी शैली में अद्भुत पश्चिमी ऑर्केस्ट्रा । 51 सेकंड का “प्रील्यूड” बस मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। पहले 33 सेकंड के लिए वायलिन और वायोला का उपयोग।
ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं लता – रफ़ी “इज़्ज़त” १९६८
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार साहिर लुधियानवी
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ पहली बार काम कर रहे साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित यह बेहद मधुर युगल गीत है। राग पहाड़ी में इसकी रचना की गई है।
इस गीत का अनूठा पहलू वायलिन/सेलोस का प्रयोग है।
पूरा गीत सिम्फनी वायलिन और सेलोस के आर्केस्ट्रा के इर्द-गिर्द बुना गया है। ‘प्रील्यूड’के साथ-साथ सभी ‘इंटरलूडेस’ अलग-अलग धुनों के साथ सिम्फनी शैली के ऑर्केस्ट्रा में रचे गए हैं।
तारों ने सजके मुकेश। “जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली” १९७१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी
ग्रुप वायोलीन का सिम्फनी स्टाइल में कंपोज़ किया गया बेहतरीन नगमा. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इस गाने के लिए १०० से ऊपर वायोलिन्स उपयोग किया.
में शायर तो नहीं शैलेन्द्र सींग “बॉबी” १९७३
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
वास्तव में एक मंत्रमुग्ध करने वाला गाना । इस प्यारे गाने के लिए वाल्ट्ज स्टाइल ऑर्केस्ट्रा को खूबसूरती से सजाया गया है। वायलिन, ईरानी संतूर, गिटार, अकॉर्डियन के साथ-साथ वायोला का उपयोग “प्रस्तावना”, सभी “अंतराल” और “पोस्टल्यूड” में भी शानदार ढंग से किया जाता है …
चंचल शीतल निर्मल कोमल मुकेश “सत्यम शिवम् सुंदरम “
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
पश्चिमी शैली की रचना को वाल्ट्ज ताल का उपयोग करके सिम्फनी शैली ऑर्केस्ट्रा को भव्य रूप से सुशोभित व्किया गया है। सराउंड साउंड में सिम्फनी शैली वायलिन के गीत के उपयोग के दौरान, “चारों ओर” में, आनंददायक लगता है।
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प्यारेलालजी और सिम्फनी
25 मई, 1998 को लक्ष्मीकांत शांताराम कुडालकर का निधन हो गया। लंबे समय से चल रही रिकॉर्ड तोड़ने वाली, ५० सालसे भी ज्यादा समयसे चलने वाली दोस्ती / साझेदारी का अंत हो गया. प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा अभी भी पूरी दुनिया में लाइव शो करने में सक्रिय हैं। अभी हाल ही में प्यारेलालजी ने स्वर्गीय भारत रत्न लता मंगेशकर के कहने पर “ओम शिवम” नाम की एक सिम्फनी डिजाइन की है, जिसे जर्मनी में बहुत सराहा गया। कृपया जर्मनों द्वारा दिए जा रहे स्टैंडिंग ओवेशन को देखें। (अंतिम दो मिनट स्टैंडिंग ओवेशन)। देखना न भूलें
अजय पौंडरिक
वड़ोदरा