Tribute :: Laxmikant ji (Laxmikant-Pyarelal) :: Birth Anniversary ::
Laxmikant ji was born on the day of “Diwali” (the day of Lakshmi Puja), 2 / 3 November 1937. He used to celebrate his birthday only on the day of Diwali.
Laxmikant ji spent his childhood amidst dire poverty in the slums of Vile-Parle (E) Mumbai. His father died when he was child. Because of the poor financial conditions of the family he also could not even complete his academic education. As a child artist
Laxmikant ji has worked in few Gujarati and Hindi pictures. He learnt Mandolin. Lata Mangeshkar spotted Laxmikant playing Mandolin and recommended his name to Shankar-Jaikishan, Naushad, S D Burman. Lata ji also sent Laxmikant to Hridaynath Mangeshkar’s music academy where he met Pyarelal ji. Laxmikant-Pyarelal “Friendship” (“दोस्ती”), started.
Laxmikant ji was an excellent Mandolin player. Some of the famous songs in which Laxmikant ji played Mandolin.
-Jadugar Sainyya “Nagin” (Kalyanji-Anandji)
-Koi Aaya Dhadkan “Lajwanti” (S D Burman)
–Hai Apna Dil To “Solva Saal” (S D Burman)
Laxmikant ji was also a good singer. He used to sing the songs during the rehearsal of the composition. Apart from the practice sessions singing, Laxmikant ji have sung following songs for Laxmikant-Pyarelal.
1 Aag Se Aag Buza Le …… Jalte Badan 1973
Singers:- Lata Mangeshkar, Asha Bhosle & Laxmikant
Lyricist:- Maya Govind
Ramanand Sagar movie, made on the subject of the perils of Drug Addiction. It has melodious songs. This song is filmed on Kum Kum, Padma Khanna and Kiran Kumar, actor Jeevan’s son. Laxmikant’s voice was used for Kiran Kumar.
Perhaps the most popular song of Laxmikant, as singer. Mesmerizing ‘prelude’ of 54 seconds sets your dancing mood to this lovely song. Use of BRASS instruments, GUITAR, ACCORDION and VIOLINS in the “interludes” is ear-pleasing. Amitabh Bachchan – Hema Malini careened appealingly.
4Jhoom Le Ghoom Le .. “Meri Jung” 1985
Singers:- Subhash Ghai & Laxmikant
Lyricist:- Anand Bakshi
A party song. Laxmikant ji singing for Anupam Kher.
बिनाका गीतमाला फाइनल में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के गीतो की वर्षवार सूची/स्थिति
साप्ताहिक उलटी गिनती कार्यक्रम जिसे “बिनाका गीतमाला” कहा जाता था अपने समय का सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध संगीत रेडियो कार्यक्रम था । इसका पहला प्रसारण 1953 में रेडियो सीलोन द्वारा किया गया था और इसके मेजबान अमीन सयानी थे। बिनाका गीत माला ने चुनिंदा शहरों में चुनिंदा दुकानों में बिक्री के हिसाब से सबसे लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मी गीतों को स्थान दिया।
इस कार्यक्रम ने हमारे बचपन और युवावस्था की लहरों को भरते हुए कई लोकप्रिय गीतों को बजाया। हमें हर बुधवार का बेसब्री से इंतजार रहता था कि कब रात के 8 बजे और एक घंटे का संगीत का कार्यक्रम शुरू हो. यह कार्यक्रम हमारे लिए दावत के समान था
श्रोताओं की पसंद के आधार पर प्रसारित होने वाले गाने हमेशा हिट रहे।
गानों के अलावा, श्रीअमीन सयानी की आवाज़ और उनकी अनोखे अंदाज़ में की गयी घोषणा से श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
प्रत्येक वर्ष के अंत में, सालाना प्रोग्राम, साप्ताहिक उलटी गिनती कार्यक्रमों पर प्रसारित करके, वर्ष के दौरान गीतों द्वारा अर्जित अंकों के आधार पर सूचियों का संकलन किया गया। ये गाने साल के टॉप हिट थे और हम इसे बिनाका गीतमाला फाइनल गाने कहते थे।
बिनाका गीतमाला के “फइनल गीतों” की गिनती करें, तो 1953 से 1993 तक “फाइनल गीतों” की संख्या 40वर्षों में1259 हो जाती है।
टॉप पांच संगीत निर्देशक जो बिनाका गीतमाला फाइनल्स में शो पर हावी रहे । 1259 गीतों में से गीतों की संख्या।
1 लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल :: 245 /1259 ( टॉप पर प्रदर्शित होने वाले11 गाने 1963 से 1993 तक)
2 शंकर-जयकिशन :: 144 / 1259 (टॉप पर प्रदर्शित होने वाले 6 गाने, 1953 से 1975 तक)
3 आर डी बर्मन :: 133 / 1259 (केवल 1 गाना टॉप पर , 1961 से 1993 तक प्रदर्शित हो रहा है)
4 कल्याणजी-आनंदजी :: 74 / 1259 (5 गाने टॉप पर प्रदर्शित, 1959 से 1990 तक)
5 एस डी बर्मन :: 55 / 1259 (3 गाने टॉप पर प्रदर्शित, 1953 से 1974 तक)
बिनाका गीतमाला फाइनल में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के 245 गीतो की वर्षवार सूची
1963
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, जिन्होंने कुछ अविस्मरणीय संगीत के साथ “पारसमणी” नामक एक अन्यथा भूलने योग्य सी ग्रेड फिल्म को अलंकृत किया, और इस फिल्म से उनकी चार रचनाओं को बिनाका गीतमाला फाइनल के शीर्ष 16 में साप्ताहिक बिनाका गीतमाला और दो में शामिल किया गया।
बिनाका गीतमाला 1965 भले ही बॉलीवुड संगीत निर्देशकों के बीच धीरे-धीरे लेकिन लगातार बदलाव का गवाह रहा हो, क्योंकि इस बार शीर्ष स्लॉट सहित अधिकांश स्लॉट पर कल्याणजी आनंदजी,लक्ष्मीकांत प्यारेलाल,आर डी बर्मन जैसे नवागंतुकों का कब्जा था।
जैसा कि पहले के वर्षों में हुआ था, इस वर्ष भी भारत में एक फिल्मी गीत को पंथ का दर्जा प्राप्त हुआ। यह गीत था- संत ज्ञानेश्वर का “ज्योत से ज्योत जगाते चलो”।
नंबर 26 दिन जवानी की चार यार ..किशोर .. “प्यार किए जा”
नंबर 24 गोर हाथों पर ना जुल्म..रफ़ी..प्यार किए जा”
नंबर 20 पायल की झंकार रस्ते .. लता .. “मेरे लाल”
नंबर 14 ये आज कल के लडके..उषा “दिल्लगी”
1967
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में “मिलन” के गीतों ने 1967 में पूरे देश में धूम मचा दी और बिनाका गीतमाला 1967 कोई अपवाद नहीं था। एक और नवागंतुक, आर डी बर्मन, जिनका संगीत निर्देशक के रूप में करियर 1961 के बाद रुका हुआ था, ने अचानक अपने करियर को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ते हुए पाया- “तीसरी मंजिल” में उनके संगीत के लिए धन्यवाद।
नंबर 33 ये कली जब तलक ..लता – महेंद्र “आए दिन बहार के”
नंबर 24 माँ मुझे अपने आँचल .. लता .. “छोटा भाई”
नंबर 23 सामने मेरे सावंरिया ..लता..”अनीता”
नंबर 21 मेरा यार बड़ा शर्मिला .. रफी .. “मिलन की रात”
नंबर 17 मुबारक हो सबको..मुकेश..’मिलन’
नंबर 13 मेरे दुश्मन तू .. रफ़ी ..” आए दिन बहार के “
नंबर 07 ना बाबा ना बाबा..लता..अनीता”
नंबर 06 हम तुम युग युग .. लता-मुकेश .. “मिलन”
नंबर 01 सावन का माहीना..लता-मुकेश .. “मिलन”
1968
नंबर 32 मस्त बहारों का मैं..रफ़ी..”फ़र्ज”
नंबर 24 छलकाये जाम..रफ़ी..मेरे हमदम मेरे दोस्त’
नंबर 22 बड़े मियां दीवाने..’शागिर्द’
नंबर 20 महबूब मेरे..लता-मुकेश..”पत्थर के सनम”
नंबर 16 मेरा नाम है चमेली .. लता .. “राजा और रैंक”
नंबर 03 तू मुझे कुबुल मैं तुझे कुबुल ..मोहम्मद अजीज-कविथा.. “खुदा गवाह”
1993
नंबर 23 मैं तेरा आशिक हूं “गुमराह” .. रूप कुमार राठौड़
नंबर 16 नायक नहीं कहलनायक हूं मैं…विनोद राठौड़-कविता..”खलनायक”
नंबर 01 चोली के पिछे क्या है … अलका याज्ञनिक-इला अरुण “खलनायक”
1993 से 1998 के बाद कई गाने आए लेकिन फिर बिनाका गीतमाला रेडियो सीलोन से बंद हो गई।
Indian Bollywood composer Pyarelal Sharma (R) poses with Indian radio announcer Ameen Sayani during the music launch of his new music album ‘Aawaaz Dil Se’ after a fourteen year break, in Mumbai on October 30, 2012. AFP PHOTO (Photo credit should read STR/AFP/Getty Images)
अतुलनीय अमिताभ बच्चन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का सूमधुर संगीत
अमिताभ बच्चन और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का जुड़ाव फिल्म “रस्ते का पत्थर”, 1972, से शुरू हुआ और फिल्म “खुदा गवाह”, 1992 तक चला। इन 20 वर्षों में हमने अमिताभ के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित कई यादगार हिट गीतों का आनंद लिया है।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत और अमिताभ बच्चन की फिल्मे
“रास्ते का पत्थर” 1972,
“एक नज़र” 1972,
“गहरी चाल” 1973,
“रोटी कपड़ा और मकान” 1974,
“मजबूर” 1974,
“अमर अकबर एंथोनी” 1977,
“परवरिश” 1977,
“ईमान धरम” 1977,
“सुहाग” 1979,
“दोस्ताना” 1980,
“राम बलराम” 1980,
“नसीब” 1981,
“देश प्रेमी” 1982,
“अंधा कानून” 1983,
“कुली” 1983।
“इंकलाब” 1984
“आखिरी रास्ता” 1986,
“अग्निपथ” 1990,
“क्रोध” 1990
“हम” 1991,
“खुदा गवाह” 1992
“अजूबा” 1992
निष्पक्ष रूप से, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अमिताभ बच्चन को सबसे अधिक हिट गाने दिए हैं। अमिताभ बच्चन के गीतों की अंतिम “बिनाका गीतमाला गीत सूची” से आसानी से पता लगाया जा सकता है. अमिताभ बच्चन के कूल 75 गाने बिनाका फाइनल में प्रस्तुत हुए. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के 26 गाने हैं, (1972 से 1992 तक) किसी भी संगीत निर्देशक द्वारा गीतों की संख्या सबसे अधिक है। (आर डी बर्मन 21 गाने, कल्याणजी-आनंदजी 13 गाने)।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने अमिताभ बच्चन के लिए कई पुरुष गायकों का इस्तेमाल किया,
(गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी, गायक लता मंगेशकर – मोहम्मद रफ़ी।)
यह मधुर और कर्णप्रिय युगल गीत बढियाँ तरीकेसे कम्पोस किया है। पहला इंटरल्यूड ईरानी संतूर के साथ और फ्लूट को गिटार के साथ सिंक्रोनाइज़ किया गया है। दूसरे इंटरल्यूड में सैक्सोफोन के साथ-साथ सिम्फनी स्टाइल वायलिन का बेहतरीन उपयोग है। तीसरे इंटरल्यूड को सरोद और वायलिन से सजाया गया है। वास्तव में सिम्फनी शैली के वायलिन को “मुखड़ा” और “अंतरा” में सराउंड साउंड इफेक्ट के साथ-साथ सुंदर ढोलक ताल के साथ सुना जा सकता है। यह गाना अमिताभ बच्चन – जया भादुड़ी पर फिल्माया गया है।
— आदमी जो कहता है “मजबुर” १९७४
(गीतकार आनंद बख्शी, गायक किशोर कुमार)
144 सेकंड का प्रिलुड़ । संगीत निर्देशकों लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए अभूतपूर्व “लॉन्ग प्रील्यूड” के साथ गीत को सजाने के लिए एक सामान्य प्रथा थी। लंबे “प्रील्यूड” को एकल वायलिन, सेलो, बांसुरी और वायलिन के साथ सिम्फनी शैली में मधुर ढंग से सजाया गया है। किशोर कुमार ने शानदार टेक ऑफ किया। ‘सिम्फनी’ शैली में लंबी प्रस्तावना के अलावा, दोनों “इंटरलूड” को अलग-अलग धुनों का उपयोग करके, ACCORDION और वायलिन के साथ शानदार ढंग से रचा गया है। यह गाना अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया है।
–माई नेम इज एंथनी गोंसाल्विस “अमर अकबर अन्थोनी” १९७७
(गीतकार आनंद बख्शी, गायक किशोर कुमार – अमिताभ बच्चन)।
इस गाने के पीछे एक कहानी है। इससे पहले फिल्म में अमिताभ बच्चन का नाम एंथनी फर्नांडीज था। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ‘वायलिन’ “गुरु”, श्री एंथनी गोंजाल्विस, (प्यारेलाल के) को श्रद्धांजलि देना चाहते थे। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने निर्देशक मनमोहन देसाई से अनुरोध किया कि क्या चरित्र (अमिताभ बच्चन), “एंथनी फर्नांडीज” का नाम बदलकर एंथनी गोंसाल्विस किया जा सकता है। मनमोहन देसाई ने सहमति व्यक्त की और इसे न भूलने के लिए गोवा के प्यारेलाल के वायलिन गुरु श्री एंथनी गोंसाल्विस को भी नाम और प्रसिद्धि मिली। गाने में वेस्टर्न बीट्स हैं। BONGO ड्रम ताल के साथ सिंक्रोनाइज़ करते हुए BRASS के सभी उपकरणों का शानदार ढंग से उपयोग किया जाता है। अमिताभ बच्चन का “इंटरलूड” में प्रतिपादन बहुत ही शानदार है।
–अठरा बरस की तू होने को आई “सुहाग” १९७९
(गीतकार आनंद बख्शी, गायक लता मंगेशकर – मोहम्मद रफ़ी।)
34 सेकंड का “प्रील्यूड” इस “मुजरा” / युगल गीत का मूड सेट करता है। घुंघरू बेल्स ढोलक/तबला ताल के साथ आश्चर्यजनक रूप से तालमेल बिठाते हैं। वायलिन के साथ सुंदरी / शहनाई / संतूर जैसे संगीत वाद्ययंत्रों का उपयोग “प्रील्यूड” और “इंटरलूड” दोनों में किया है।
–बने चाह दुश्मन ज़माना “दोस्ताना” १९८० (गीतकार आनंद बख्शी, गायक किशोर कुमार-मोहम्मद रफ़ी)
‘दोस्ती’ पर सुंदर मधुर गीत। “इंटरल्यूड्स” को सिम्फनी शैली के वायलिन और सेलो में खूबसूरत तरीके से सजाया गया है।
–जॉन जानी जनार्दन “नसीब” १९८१
(गीतकार आनंद बख्शी गायक मोहम्मद रफ़ी)
मोहम्मद रफ़ी द्वारा गाया गया बहुत ही शानदार नगमा । पूरा गाना ACCORDION की झलक के इर्द-गिर्द बुना गया है। पश्चिमी शैली का ऑर्केस्ट्रा और ताल (rhythm) बस शानदार है।
-गोरी का साजन की गोरी “आखिरी रास्ता” १९८६
(गीतकार आनंद बख्शी, गायक एस जानकी – मोहम्मद अजीज)
एक शरारती गीत।
—जुम्मा चुम्मा दे दे “हम” १९९१
(गीतकार आनंद बख्शी गायक सुदेश भोसले – कविता कृष्णमूर्ति)
पूरे गीत में पश्चिमी शैली का विशाल ऑर्केस्ट्रा ।
75 सेकंड का “प्रील्यूड”, गिटार की खूबसूरत झलकियों के साथ गाने का मूड सेट करता है। TUBA और FLUGELHORN, SAXOPHONE और CLARINET जैसे सभी BRASS संगीत वाद्ययंत्रों को गिटार के साथ ‘भराव’ (‘जुम्मा चुम्मा दे दे’ के प्रतिपादन के बाद) के रूप में शानदार ढंग से बजाया गया है। सुदेश भोंसले के सामान्य चिल्लाहट और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के जोरदार ऑर्केस्ट्रा के बावजूद, गीत का माधुर्यपूर्ण हिस्सा नहीं खोया है। यह गाना यूथ एंथम बन गया है।
–तू ना जा मेरे बादशाह “खुदा गवाह” १९९२
(गीतकार आनंद बख्शी, गायक अलका याज्ञनिक – मोहम्मद अजीज)
बेहद मधुर रोमांटिक युगल। इस गीत के लिए मधुर लय(rhythm) उत्पन्न करने के लिए “थाली” (विशाल धातु के व्यंजन) का उपयोग किया जाता है। रुबाब और हारमोनियम जैसे अफगान संगीत वाद्ययंत्रों को ऑर्केस्ट्रा में उत्कृष्ट रूप से क्रियान्वित किया है।
BHARAT RATNA Lata Mangeshkar & Her Unique Partnership With Laxmikant-Pyarelal
Pyarelal, Laxmikant, LATA MANGESHKAR, Mohammad Rafi & J Omprakash.
“Sureela Bal Kala Kendra” was run by a group of children, aged below 15. It consists of child musicians Hridaynath Mangeshkar (team leader), Ushah Mangeshkar, Pyarelal Ramprasad Sharma (Pyarelalji) and all his younger brothers, Ganesh, Gorakh. Later joined by Laxmikant Shantaram Kudalkar (Laxmikantji) his younger brother Shashikant and many more. The “Sureela children’s gang” hung around together at Lataji’s home, day and night absorbed in the notes of golden music, intoxicated by rhythm and melody.
Both Laxmikant and Pyarelal have a strong bond at “Sureela Bal Kala Kendra”, run by the Mangeshkar family.. Their friendship started from Lata Mangeshkar’s house. Laxmikant-Pyarelal name emanates from the house of Lata Mangeshkar.
Lata Mangeshkar have sung as many as 712 songs, under the music directors, Laxmikant-Pyarelal, a record. What mind boggling variety and range did we get in those 712 numbers which included chart-slammers and classics, and chaalu numbers as well as connoisseur choices. It is impossible to find that variety and that sustained excellence without monotony in the output of any other composer, with Lata or with any other singer.
We get the unmatched variety of songs of Laxmikant-Pyarelal with Lata Mangeshkar. There are many films in which Mangeshkar has sung more than 4 – 5 songs in the film.. See below the list, 4 or more songs. ..sheer variety.
Parasmani 1963
Sati Savitri 1964
Sant Gyaneshwar 1964
Lootera 1966
Intequam 1968 (Two Brilliant Cabaret songs)
Baharon ki Manzil 1968
Sharafat 1970
Abhinetri 1971
Jal Bin Machhali Nritya Bin Bijalee 1971
Mera Gaon Mera Desh 1972..
Raja Jani 1972 Daag 1973
Bobby 1973
Satyam Shivam Sundaram 1978
Ek Duje Ke Liye 1981
In “Sant Gyaneshwar”, 1964, Laxmikant-Pyarelal has made Lata Mangeshkar sing for five different characters in the film and each song Lataji has diversified her singing.
An old lady : mere ladlo tum to phoolo phalo
Child artist master Raju : ek do teen char bhaiya bano hoshiyar
Babloo : jyot se jyot jagate chalo
Surekha leading lady : khabar mori na lini, bahut din beete
“Lavani”, Marathi folk : main to chhel chhabili naar
From 1963 to 1973 Lata Mangeshkar recorded 355 songs ONLY under Laxmikant-Pyarelal. All are Simply superb…
Sati Savitri 1964
If we are to talk of LAXMIKANT-PYARELAL’s Classical or Semi-Classical Songs and that too with LATA MANGESHKAR ..songs of “Sati Savitri” stands out to be number 1….Lata has sung as many as Six songs ( four Solos) and all are based on classical ragas…The songs of this film can be heard even today. The meaningful wordings of these immortal songs are written by PANDIT BHARAT VYAS.
Tum Gagan Ke Chandrama Ho….Lata Mangeshkar -Manna Dey
Jeevan Dor Tumhi Sang Bandhi….Lata Mangeshkar
Itni Jaldi Kya Hai Gori…Lata Mangeshkar-Usha Mangeshkar-Kamal Barot.
Sakhi Ri Pee Ka Nam Na Puchho..Lata Mangeshkar
Kabhi To Miloge Jeevan Saathi. …Lata Mangeshkar.
Mujhe Loot Ke Na Jana ..Lata Mangeshkar
Kabhi To Miloge Jeevan Saathi. …
Mind-Blowing in Raag KALAWATI. Beautiful use of SYMPHONY style orchestra arrangements (VIOLINS) in- between the song. It is difficult to choose which one is best song from “Sati Savitri ”…But I have chosen beautiful composition on raag ‘KALAVATI’. The depth of emotions, soul and divine melody of this rendition in Rag kalavati is timeless and matchless.
Lootera 1965
I was just 10 years old when Raj Kumar Kohli’s “Lootera” was released. It was a musical hit movie. All the songs became immensely popular in 1965 & 1966. I listen to ‘Lootera” songs at least once a week.
All the songs of this film are written by Anand Bakshi and have different flavors and compositions. Every song has a different rhythm. We have Gazal, Chalu song, Western classical / Arabian Folk and Cabaret. A sheer variety of songs.
As said earlier when we talk of Combo of Lata Mangeshkar & Laxmikant-Pyarelal, we always get different flavors in the songs. Songs of “Lootera” is one of them. Lata Mangeshkar has sung as many as 6 solo songs in this film.
Kisi Ko Pata Na Chale
Mujhe Dekhiye Main Koi
Neend Nigahon Se
O Dilwalo Saaze Dil Pe
Raat Se Kaho Ruke Zara
Sanam Rah Bhoole
Kisi Ko Pata Na Chale Baat Ka….
A perfect Lata – LP stamped song…Use of DHOLAK is worth to listen to. Lata is simply the best. VIOLINS, CELLOs, MANDOLIN are awesomely orchestrated in the ‘interludes’
Intequam 1968
The picture was produced & directed by R K Nayyar actress Sadhana’s Husband.
Powerfully orchestrated in all the songs.. The songs are written by Rajinder Krishan
Lata Mangeshkar has sung 4 solo including two cebaret, + 1 duet with Rafi Saheb.. One totally intoxicated
Aa Jaan-E-Jaa (Cabaret)
Mehafil Soyee (Cabaret)
Kaise Rahoon Chup
Geet Tere Saaz Ka
Hum Tumhare Liye
Kaise Rahoon Chup
Another drunkard song from “Inteqam” with “HICCUPs” as well as “CHOO-CHOO” sound naughtily rendered by Lata Mangeshkar. Here we find Sadhana getting drunk and singing / dancing a song in a party, much to the embarrassment of Sanjay Khan and Rehman. This soundtrack is still memorable today. The “prelude” of 34 seconds is starts with ACCORDION and SYMPHONY style VIOLINS. The “Interludes” are awesomely orchestrated with LATA ji’s ‘intoxicated’ “AALAPS”, synchronised with FLUTE, HICCUPS as well as VIOLINS in SYMPHONY style, ACOUSTIC GUITAR and ACCORDION . How beautifully the GUITAR auriculares are overlapped with Lata ji’s “CHOO-CHOO” sound (2.06 to 2.09) and also at (3.24 to 3.28). Glimpses of ACCORDION are mellifluously used as “filler”. Not to forget the different type of “rhythm” created on BONGO DRUMS. Not to forget the elegant Helen’s presence in the song.
Producer who made “Shagird” earlier, had made this statement that Ahmedabad field will support.
Sa Re Ga Ma Pa
Khiche Ham Se Saawarre
Sajna O Sajna
O Ghata Sawari
Dhadkan Har Dil Ki
ABHINETRI another musical hit film with as many as six songs sung by Lata Mangeshkar. This one will always remain the best. A Yoga song.
O Ghata Sawari Thodi Thodi Bawari
Magnetizing “prelude” of 57 seconds, with symphony style VIOLINS , JAZZ FLUTE, SANTOOR, GLOCKENSPIEL and Lata’s Humming Sound. How delicately and tunefully Laxmikant-Pyarelal orchestrated the synchronization of Lata’s voice with beautiful glimpses of JAZZ FLUTE, is just enthralling as well as creating the rainy season effect and also sets the mood of the song. All the “interludes” are with different tunes. In second ‘interlude’ creating WATER SOUND is killer. Glimpses of JAZZ FLUTE , as filler, in between the song + “pause” and the western style rhythm s has made this song a special. Filmed on the actress Hema Malini, performing YOGA
Jal Bin Machhli Nritya Bin Bijlee 1971
It was not an easy job to enter into V. Shantaram Camp. He has his own choice of music directors which was limited to 2 to 3. Many BIG names of Music Directors of Forties, Fifties, Sixties and Seventies, could not got the chance to work with V. Shantaram. It was in 1970..LAXMIKANT-PYAREAL got an opportunity to work for the first and last time for V Shantaram’s “classic” film “JAL BIN MACHHALI NRITYA BIN BIJLI”. V Shantaram was having lean period after two flops “ Sehra” and “ Boond Jo Ban Gayi Moti” and for Laxmikant-Pyarelal it was an opportunity to work with an critically acclaimed director – and to show their prowess in hitherto new field – a Dance Musical.The outcome was outstanding.
FIRST TIME FOR HINDI FILM MUSIC all the songs of this films were recorded in “”Stereophonic Sound System””.
Lata Mangeshkar has sung as many as FOUR solo songs in addition to TWO duets with Mukesh. Mukesh has sung one song which became an immense hit.
If you look at this JBMNB Album, all the songs are composed in a different style. Each song has a different ‘rhythm’. The orchestra arrangements for all the songs is just mesmerizing. It is one of the finest musical album for the unique combo of Lata Mangeshkar and Laxmikant-Pyarelal.
LAXMIKANT-PYARELAL, have synchronized as well overlapped LATA MANGESHKAR’s voice in the highly rich orchestra arrangements. All the songs have different composition and different RHYTHM as well. On the top of everything…the chemistry of Lataji & LP worked miracle.
An outstanding music
Man Ki Pyas Mere Man Se …
Kajara Laga Ke Re Bindiya ….
O Mitwa O Mitwa …
Jo Main Chali Phir Na Milungi..
Baat Hai Ek Boond Si.. Lata-Mukesh
Taron Ne Sajake
Kajara Laga Ke Re Bindia Saja Ke..
A song on “MAYUR DANCE”. One more gem of composition with a different style.
कजरा लगाके रे बिंदिया सजाके !! हो आई में तो आई रे आई लायी मोहे लायि मिलन धुन पिया की !!. .A long musical session was held between V. Shantaram, Actress Sandhya, Laxmikant-Pyarelal and Majrooh Sultanpuri. Actress Sandhya first demonstrated the dance steps, performed the full dance and then told Laxmikant-Pyarelal to prepare the tune and rhythm by watching her steps. It was a different and unique style to compose the song. BUT Laxmikant-Pyarelal along with LATA MANGESHKAR and Majrooh came out with an outstanding composition.A song on MAYUR DANCE. One more gem of composition with a different style. FLUTE is prominently used in western style. Perhaps the longest “prelude” 3 minutes and 27 seconds of a beautiful dance sequence. This song is a GEM. FLUTE and SANTOOR, VIOLIN, VIOLA and GUITAR are prominently used and synchronized as well as overlapped, in western style orchestra arrangements with different style of rhythm with DHOLAK. Also don’t forget to listen to the “postlude” of the song and “Mayur Dance”.
एक निर्देशक के रूप में यश चोपड़ा ने अपने बड़े भाई बीआर चोपड़ा की बी.आर. फिल्म्स के बैनर तले कई संगीतमय हिट फिल्में दी हैं। 1973 में यश चोपड़ा ने बी आर चोपड़ा के बैनर से बाहर आकर ”यश राज फिल्म्स” की स्थापना की. यश चोपड़ा एक निर्माता और निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म ‘दाग’’ के लिए मशहूर सितारे चाहिए थे.
((1983 में सुभाष घई की संगीतमय हिट “हीरो” के गोल्डन डिस्क समारोह के दौरान लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ यश चोपड़ा।))
यश राज फिल्म्स के साथ शुरुआत करने के लिए, निर्माता और निर्देशक यश चोपड़ा उस समय उपलब्ध ‘सर्वश्रेष्ठ’ कलाकारों का उपयोग करना चाहते थे।
सत्तर के दशक की शुरुआत में राजेश खन्ना सर्वोच्च स्थान पर थे. मशहूर शर्मिला टैगोर के साथ राखी को भी फिल्म मैं लिया। उनदिनों ये दोनों अभिनेत्रियां शीर्ष स्थान पर थी
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल शीर्ष स्थान पर रहने के साथ शानदार फॉर्म में थे. ”यश राज फिल्म्स” के लिए पहले संगीत निर्देशक का सम्मान मिला लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को. यश जी ने गाने लिखने के लिए अपने पसंदीदा गीतकार साहिर लुधियानवी को चुना।
‘दाग’ का संगीत एक उत्कृष्ट / सदाबहार/ और हमेशा ताज़ा रहनेवाला संगीत है और अभी भी लोकप्रिय है।
आइए देखते हैं गानों की…
मेरे दिल मैं आज क्या है किशोर कुमार
लाजवाब, सुमधुर, कर्णप्रिय और रोमांटिक गाना है । जिसमे मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऑर्केस्ट्रा, इरानी संतूर (पं शिवकुमार शर्मा ) और गिटार (गोरख शर्मा ) से सुशोभित किया है.
साहिर लुधियानवी के सुरुचिपूर्ण गीत और किशोर कुमार की कोमल और साथ ही रोमांटिक गायन और ऑर्केस्ट्रा की सुंदर सजावट के साथ लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की अद्भुत रचना ने इस गीत को सर्वकालिक क्लासिक बना दिया है।
आपको बस राजेश खन्ना के गाने के तरीके को देखना है, “मेरा प्यार कह रहा है मैं तुझे खुदा बना दूं” और आप गाना देखना चाहेंगे। राजेश खन्ना से बेहतर प्रेम गीत कोई और नहीं कर सकता था।
इस रोमांटिक गीत को गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष गायक, फिल्मफेयर पुरस्कारों द्वारा नामांकित किशोर कुमार को भी पूरा श्रेय दिया जाता है। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के तहत किशोर कुमार के बेहतरीन गीतों में से एक।
हम और तुम तुम और हम किशोर कुमार – लता मंगेशकर
यह किशोर कुमार और लता मंगेशकर द्वारा गाया गया, रोमांटिक गीत पूरी तरह से Acoustic गिटार की ताल, rhythm पर आधारित है. इस गाने की एक और खूबी है ‘इंटरल्यूड्स’। दोनों ‘अंतराल’ की धुन अलग-अलग है। किशोर और लता द्वारा वायलिन की झलक के साथ आलाप ‘ से भरा पहला ‘अंतराल’। दूसरे ‘अंतराल’ में वायलिन को ‘वाल्ट्ज’ शैली’ (Waltz Rhythm) में सजाया गया है। सुंदर पॉसेस (रोक) गाने की मधुरता को बढ़ाते है.
नी मैं यार मना नि लता मंगेशकर और मीनू पुरषोत्तम
पंजाबी शैली में कंपोज़ किया गया ये गाना, शक्तिशाली लय में “ढोल”, “ढोलक”, “तबला” और “क्लैपिंग” (ताली) शामिल हैं, बस मन उड़ाने वाला है। सभी “अंतराल” को शहनाई और अन्य भारतीय पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ सजाया है। “पोस्टलूड” सुनने लायक है।
अब चाहे माँ रूठे या बाबा किशोर कुमार – लता मंगेशकर
यह गीत “भंगड़ा” नृत्य शैली में बना है। कॉलेज के छात्रों की आवाज को सही ठहराने के लिए किशोर कुमार और लता मंगेशकर द्वारा स्टाइलिश रूप से प्रस्तुत किया गया। इसमें एक विशिष्ट एलपी शैली की लय (Rhythm) है। फिल्म का एक और हिट गाना। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर दोनों ही अच्छे लगते हैं।
जब भी चाहे नई दुनिया लता मंगेशकर
साहिर लुधियानवी द्वारा जादुई गीत शब्दों के साथ दुखद गीत। इस “ग़ज़ल” अंदाज़ के गाने में ‘अंतराल’
सुंदर अतिव्यापी ध्वनि प्रभाव के साथ “सिम्फनी” शैली ऑर्केस्ट्रा में वायलिन द्वारा खूबसूरती से सजाया गया है।
हवा चले कैसे लता मंगेशकर
गीत शून्य प्रस्तावना से शुरू होता है, लता प्रतिपादन फिर वायलिन (बड़ा ‘ठहराव’) और संतूर।
इस गीत में बोंगो ड्रम का उपयोग करके विभिन्न प्रकार की “लय” Rhythm पर गायन।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को 1973 में राज कपूर की “बॉबी” के साथ “दाग” के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशकों के लिए नामांकित किया गया था। अफसोस की बात है कि इन दोनों फिल्मों के लिए उत्कृष्ट संगीत के बावजूद, इनमें से किसी भी फिल्म को सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार नहीं मिला।
म्यूजिकल हिट फिल्म ‘दाग’ की शानदार सफलता के बाद, यश चोपड़ा चाहते थे कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल अपनी अगली फिल्म ‘कभी कभी’ के लिए संगीत दें। लेकिन लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल कुछ और प्रोजेक्ट्स में काफी बिजी थे।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यश चोपड़ा की पहली संगीतमय हिट फिल्म “दाग ” लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए पहली और आखिरी फिल्म बन गई।
यदि आप सभी यशराज फिल्म्स के संगीत की तुलना करते हैं, तो “दाग” शीर्ष विक्रेता और सर्वश्रेष्ठ भी बना हुआ है।
Glimpses of Saxophone can be heard in the Laxmikant-Pyarelalorchestra in many songs.
Laxmikant-Pyarelal had a very good association with Saxophonist Manohari Singh since 1958. He had come to Mumbai in mid fifties. Since their younger days they were very good friends and worked a lot together, with Kalyanji Virji Shah, then, (Kalyanji-Anandji)
There are many songs in which Laxmikant-Pyarelal has incorporated Saxophonist Manohari Singh in Jazz flute or saxophone, till early seventies. Later Saxophonist Shri SureshYadavplayed the saxophone in Laxmikant-Pyarelal orchestra
लेडीज़ एंड जेंटलमेन। ….के मैं आया हूँ !!
AND DEV ANAND
The song Ladies and Gentlemen, Ke Main Aaya Hoon,,, sung by Kishore Kumar for the film Amir Garib, 1974. The song is penned by Anand Bakshi and composed by Laxmikant-Pyarelal is one of the nonpareil songs composed on SAXOPHONE, played by Manohari Singh.
This song, Main Aaya Hoon, is one of the toughest and very complicated saxophone prelude and interlude pieces. Manohari Singh himself said in an interview that this piece composed and written by Pyarelalji is the hardest ever saxophone piece I have played in HFM.
Actor Dev Anand who was to act on this song as a saxophonist, had to carry out practice sessions for 15 days to look like an impeccable / perfect saxophonist on the screen.
बिनाका गीतमाला:: शीर्ष 5 संगीत निर्देशक शो पर हावी
साप्ताहिक उलटी गिनती कार्यक्रम जिसे “बिनाका गीतमाला” कहा जाता है, अपने समय का सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध संगीत रेडियो कार्यक्रम है। इसका पहला प्रसारण 1953 में रेडियो सीलोन द्वारा किया गया था और इसके मेजबान अमीन सयानी थे। बिनाका गीत माला ने चुनिंदा शहरों में चुनिंदा दुकानों में बिक्री के हिसाब से सबसे लोकप्रिय बॉलीवुड फिल्मी गीतों को स्थान दिया।
इस कार्यक्रम ने हमारे बचपन और युवावस्था की लहरों को भरते हुए कई लोकप्रिय गीतों को बजाया। हम हर बुधवार का बेसब्री से इंतजार करते थे की कब आठ बजे और कब श्री अमिन सायानी आये और संगीत का एक घंटे का नॉन स्टॉप कार्यक्रम शुरू हो.
श्रोताओं की पसंद के आधार पर प्रसारित होने वाले गाने हमेशा हिट हो गए।गानों के अलावा, अमीन सयानी जी की आवाज़ और अपने अनोखे अंदाज़ से श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
प्रत्येक वर्ष के अंत में, साप्ताहिक उलटी गिनती कार्यक्रमों पर प्रसारित करके, वर्ष के दौरान गीतों द्वारा अर्जित अंकों के आधार पर सूचियों का संकलन किया जाता था । ये गाने साल के टॉप हिट थे और हम इसे बिनाका गीतमाला फाइनल सॉन्ग कहते थे।
बिनाका गीतमाला हर साल के अंत में, वर्ष के शीर्ष ‘अंतिम गीतों’ के गीतों का आदेश देते हुए वार्षिक (वार्षिक) कार्यक्रम प्रसारित करती थी।
बिनाका गीतमाला के “अंतिम गीतों” की गिनती करें, तो 1953 से 1993 तक “अंतिम गीत” की संख्या 40 वर्षों में 1259 हो जाती है।
1) लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (245 बिनाका गीतमाला फाइनल गाने)- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, जिन्होंने 1963 में बिनाका गीतमाला फाइनल में अपनी पहली फिल्म “परसमणि” के साथ शुरुआत की, बिनाका गीतमाला के इतिहास में सबसे शानदार संगीत निर्देशक बन गए। अपने लंबे और शानदार करियर के दौरान, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने 1967, 1968, 1969, 1970, 1975,1980,1984,1986, 1987, 1989 और 1993 में बिनाका गीतमाला फाइनल में शीर्ष स्थान हासिल किया। top hit. यहां लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के गीतों की सूची दी गई है जो उस विशेष वर्ष में शीर्ष स्थान पर थे।
1967 मिलन:- सावन का माहिना मुकेश और लता मंगेशकर
1968 शागिर्द:- दिल बिल प्यार व्यार लता मंगेशकर
1969 इंतक़ाम:- कैसे रहु चुप लता मंगेशकर
1970 दो रास्ते: बिंदिया चमके गि लता मंगेशकर
1975 रोटी कपड़ा और मकान – मेहंगायी मार गई लता – मुकेश जानी बाबू
1980 सरगम:- डफली वाले मोहम्मद रफी और लता
1984 हीरो:- तू मेरा हीरो है अनुराधा पौडवाल और मनहार
1986 संजोग:- यशोदा का नंदलाला लता मंगेशकर
1987 नाम: – चिट्ठी आई है पंकज उदास
1989 राम लखन:- माई नेम इज लखन मोहम्मद अजीज
1993 खलनायक:- चोली के पीछे अलका याग्निक और इला अरुण
बिनाका गीतमाला के इतिहास में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल सांख्यिकीय रूप से सबसे सफल संगीत निर्देशक हैं
2) शंकर-जयकिशन (144 बिनाका गीतमाला फाइनल गाने) बिनाका गीतमाला के शुरुआती दिनों में सबसे सफल संगीत निर्देशक शंकर जयकिशन के नाम से जाने जाने वाले यह आश्चर्यजनक रूप से विपुल और सफल संगीत निर्देशक थे। उनके गीत 1955 के बिनाका गीतमाला फाइनल में पहले स्थान पर रहे। ,1961,1962,1964,1966 और 1971। और यह देखते हुए कि उन्होंने बिनाका गीतमाला में अपना शानदार प्रदर्शन किया, जबकि कई महान संगीत निर्देशकों के खिलाफ अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में प्रतिस्पर्धा करते हुए, शंकर जयकिशन की उपलब्धियां बस दिमाग को चकरा देती
3) आर डी बर्मन(133 बिनाका गीतमाला फाइनल गाने) – एसडी बर्मन के बेटे ने 1 9 61 में छोटे नवाब के साथ अपना करियर शुरू किया, और फिर कुछ वर्षों के लिए अपना दबदबा भी रखा. आश्चर्यजनक रूप से, बिनाका गीतमाला में आरडी बर्मन के 1970 के दशक में भारी प्रभुत्व के बावजूद, बिनाका गीतमाला फाइनल में आर डी बर्मन का पहला स्थान वाला एक ही गाना था- और यह 1972 में था।
4) कल्याणजी-आनंदजी(74 बिनाका गीतमाला फाइनल गाने)- कल्याणजी आनंदजी लचीले थे, जो जनता के बदलते स्वाद के बावजूद अपनी पकड़ बना सकते थे। उन्होंने बिनाका गीतमाला 1960 में अपनी शुरुआत की और 1980 के दशक के अंत तक जीवित रहे। 1965, 1973,1974, 1979 और 1981 में बिनाका गीतमाला फाइनल की सूची में उनके गाने सबसे ऊपर थे। काफी प्रभावशाली, किसी को कहना चाहिए।
5) एस डी बर्मन (55 बिनाका गीतमाला फाइनल गाने)- एस डी बर्मन पहले से ही एक स्थापित संगीत निर्देशक थे जब बिनाका गीतमाला काउंटडाउन शो 1954 में शुरू हुआ था। और यह एक एसडी बर्मन रचना थी जिसे वर्ष का पहला शीर्ष गीत बनने का सम्मान मिला था। 1954में। एस डी बर्मन के गीतों ने 1958 और 1959 में भी बिनाका फाइनल सूची में शीर्ष स्थान हासिल किया।
लक्ष्मी-प्यारे का संगीत सागर :: प्यारेलालजी की वायोलिनसे निकले गीतों के मोती
३ सितम्बर लिविंग लीजेंड, हिंदी फिल्म संगीत सबसे लोकप्रिय और सबसे सफलतम संगीत दिग्दर्शक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के, प्यारेलालजी का जनमदिन है.
प्यारेलालजी का जन्म ३ सितम्बर, १९४० में मुंबई में हुआ. प्यारेलालजी के पिताजी पंडित रामप्रसाद शर्मा नामांकित ट्रम्पेट प्लेयर थे और संगीत शिक्षक थे. संगीत की प्रम्भारिक शिक्षा प्यारेलालजी ने अपने पिताजी से प्राप्त की. ववेस्टर्न संगीत के नोट लिखना और वायलिन। बाद में प्यारेलालजी ने सुप्रसिद्ध वायोलिन वादक और शिक्षक, गोवा के श्री अन्थोनी गोंसाल्विस से वायोलीन की शिक्षा प्राप्त की. केवल आठ साल के उम्रमें प्यारेलालजी ने वायलिन में निपुणता हासिल कर ली.
Pyarelal ji playing Violin in Naushad’s orchestra
बाद में ‘अमर अकबर अन्थोनी, १९७७, में अपने गुरु अन्थोनी गोंसाल्विस को “माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विस” गीत द्वारा प्यारेलालजी ने अपने वायलिन शिक्षक को श्रद्धांजलि दी.
घरके हालात ठीक नहीं थे. ऐसे में उंहोने पैसे कमाने के लिए चर्चमें वायोलीन बजाना चालू किया।
8 years of age Pyarelal ji with his father
लता मंगेशकर के छोटे भाई पंडित हृदयनाथ मंगेशकर, जो के प्यारेलालजी के हमउम्र थे, उन्होंने प्यारेलाल जी के पीताजिसे संगीत सीखना चालू किया। उन्ही दिनों प्यारेलाल और पंडित हृदयनाथ मंगेशकर अच्छे दोस्त बन गए..
Laxmikant-Pyarelal in Mangeshkar’s Sureela Bal Kendra
पंडित हृदयनाथ मंगेशकर ने अपने ही घरमे एक संगीत अकादमी शुरू की और उसका नाम रखा “सुरीला बाल केंद्र”. उस अकादमी में हृदयनाथजी के अलावा उनकी बहने मीना मंगेशकर और उषा मंगेशकर , प्यारेलालजी, उनके छोटे भाई गणेश, गोरख, आनंद, महेश, नरेश इत्यादि लोग थे. १० साल के उम्रके प्यारेलाल (छोटे संगीतकार) और बाकि बालक सब के सब लता मंगेशकर के घर में रहना, खाना और संगीत बजाना।
थोड़े ही दिनोंमें भारत रत्न लता मंगेशकर ने एक कॉन्सर्ट में लक्ष्मीकांत को मेंडोलिन बजाते सुना। लताजी ने दोनों भाइयों लक्ष्मीकांत और शशिकांत की शंकर-जयकिशन, नौशाद और सी रामचंद्र के पास शिफारस की. साथ ही लताजी ने लक्ष्मीकांत और उनके बड़े भाई शशिकांत को “सुरीला बाल केंद्र” में भेज दिया।
वहींसे शुरू हुआ प्यारेलाल जी और लक्ष्मीकांत जी के लम्बी “दोस्ती” सिलसिला। वहींसे याने की लता मंगेशकर जी के घर से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के “नाम “ का उदय हुआ. फिर क्या हुआ सब लोग जानते हे। १९६३ से लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (१९६३ – १९९८) के नाम का एक युग की शुरुआत हुई।
503 फिल्में, 160 गायक, 72 गीतकार, 2845 गाने। बॉलीवुड संगीत में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का जबरदस्त योगदान।
प्यारेलालजी ने एक वायलिन वादक के रूप में, संगीतकार के बुलो सी रानी, नौशाद, मदन मोहन, सी रामचंद्र, खय्याम, चित्रगुप्त और एस डी बर्मन के साथ काम किया है।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के अधिकांश गानों के ऑर्केस्टेशन में वायोलीन को प्रमुखता दी गयी हे. एकल भी और ग्रुप वायोलिन भी. ग्रुप वायोलिन में ४० से भी ज्यादा वायोलिन का होना जरूरी था. अधिकांश गानो में वायोलिन को सिम्फनी स्टाइल मे बजाया गया है, जो गाानो को वेस्टर्न टच देता है. ८०% गाने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने ग्रुप वायोलिन्स का उपयोग किया है।
प्यारेलालजी के कान इतने तीक्ष्ण है की अगर १०० की संख्या के ऑर्केस्ट्रा में अगर कोई गलती करता है तो उसे तुरंत भाप लेते है.
इस ब्लॉग के लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ऑर्केस्ट्रा में वायोलिन के उपयोग को उजागर किया है.
१) सोलो (एकल) वायोलिन जो प्यारेलालजी ने खुद बजाया है. इस श्रेणी में सिर्फ दो गाने है.
२) सोलो (एकल) वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
३) ग्रुप वायोलिन्स का सिम्फनी स्टाइल में खूबसूरत प्रदर्शन।
४) लता मंगेशकर के कहने पर प्यारेलालजी द्वारा लिखी गयी सिम्फनी जो जर्मन म्यूज़िसिअन्स ने बजाई।
सोलो (एकल) वायोलिन और प्यारेलालजी
मैं यह सोचकर … मोहम्मद रफ़ी >>> “हकीकत” १९६४
संगीतकार मदन मोहन गीतकार कैफ़ी आज़मी
संगीतकार मदन मोहन जी ने जब ये गाना बनाया तो वो चाहते थे की प्यारेलालजी ही वायोलीन बजाये। लेकिन समस्या ये थी की लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल स्वंतत्र रूप से संगीत देने लगे थे. मदन मोहनजी सोच में पड गए और कह दिया की अगर प्यारेलालजी वायोलिन नहीं बजाते तो वो ये गाना फिल्म्से निकाल देंगे। लेकिन प्यारेलालजी ने जैसेही सुना तो वह मदन मोहनजी की इच्छा के अनुसार वायोलिन बजाने पहुँच गए.
ये गाना नहीं बल्कि ये के जुगलबंदी है, वो भी मोहम्मद रफ़ी के आवाज की और प्यारेलालजी के वायोलिन की. रफ़ी साहब की हर एक लाइन गाने के बाद प्यारेलालजी का वायोलिन बजता है. .
पूरा का पूरा गाना वायोलिन (एकल) पर केंद्रित है. इस गाने मैं भी प्यारेलालजी ने वायोलिन बजाया है. वायोलिन के साथ पियानो भी बेहतरीन तरीकेसे बजाय गया है. कर्णप्रिय ढोलक ‘rhythm’
सोलो (एकल) वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
मेरा नाम है चमेली। ..लता मंगेशकर। …”राजा और रंक” १९६८
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
ढोलकी’ पर बेहतरीन गीतों में से एक. पहली और तीसरे इंटरलूड में वायोलिन और रावणहत्ता (राजस्थानी वायोलिन ) के साथ वायोलीन ” के साथ। पहला “विराम” 39 वें सेकंड के अंत में “प्रस्तावना” में सुना जा सकता है जो वायलिन से भरा है और “ढोलकी” के साथ है। यह गीत अभिनेत्री कूमकूम पर फिल्माया है.
हाय शरमाऊं किस किस को बताऊँ। .. लता मंगेशकर “मेरा गाव् मेरा देश” १९७१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी
75 सेकंड के प्रील्यूड ने शो को चुरा लिया, इसे वायलिन, रावणहट्टा (राजस्थान का एक वायलिन), रुबाब घुंघरू बेल्स और मैंडोलिन के अद्भुत प्रदर्शन के साथ-साथ ढोलक ताल, सुनने वालो को मंत्रमुग्ध करता है. तीनो इंटरलूड में वायोलिन और रावणहट्टा (राजस्थान का एक वायलिन) अच्छे तरीकेसे ऑर्केस्ट्रा में बजता है.
इस गाने को फिल्माने के लिए राज खोसला ने बेहतरीन काम किया है।यह गाना अभिनेत्री लक्ष्मी छाया, धर्मेंद्र और विनोद खन्ना पर फिल्माया है.
एक प्यार का नगमा है। ..लता मंगेशकर – मुकेश। “शोर” १९७२
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार संतोष आनंद
सोलो (एकल ) और ग्रुप वायोलिन्स। इस गीत के तीन संस्करण हैं. पहले संस्करण का विश्लेषण किया गया है।
46 सेकंड के आकर्षक “प्रील्यूड” में सोलो वायोलिन्स और लताजी की गुनगुनाहट से शुरुआत से होती है. फिर से एकल वायलिन और संतूर के “स्ट्रोक” के साथ समाप्त होता है। लता जी :: एक प्यार का नगमा है। बोंगो ड्रम ‘लय’ शुरू होता है। लता जी का सुर / गाना, पूरे गीत में सिम्फनी शैली की वायलिनों से घिरा हुआ है। तीनो इंटरलूडस में सोलो और ग्रुप वायोलिन्स का और इंटरलूड की शुरुआत एकल वायलिन, लताजी के कानों को भाते हुए गुनगुनाहट से होती है। सोलो वायोलिन, गोवा के मि. जेरी फर्नांडिसने बजाया है.
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए अभूतपूर्व “लॉन्ग प्रील्यूड” के साथ गीत को सजाने की एक सामान्य प्रथा थी।
144 सेकंड का प्रस्तावना। संगीत निर्देशकों लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए अभूतपूर्व “लॉन्ग प्रील्यूड” के साथ गीत को सजाने के लिए एक सामान्य प्रथा थी। लंबे प्रील्यूड के साथ, लक्ष्मी-प्यारे द्वारा रचित कई गीत हैं।
दर्द-ए-दिल दर्दl-ए-जीगर …किशोर कुमार ..क़र्ज़ १९८०
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
पूरा का पूरा गाना सोलो वायलीन और ग्रुप वायसे सुशोभित है. इस गाने को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सिम्फनी ऑर्केस्ट्रा पर केंद्रित किया है। .. अमर हल्दीपुर ने सोलो वायोलिन बजाया है.
शबनम का कतरा। ..लता मंगेशकर। “शरारा” १९८४
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
लता मंगेशकर और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल से सुंदर वाल्ट्ज एक सरासर जादू। 98 सेकंड का प्रील्यूड, एकल वायलिन से भरपूर और लताजी द्वारा प्रस्तुत आलप और हमिंग। तीसरा इंटरलूड एकल वायोलिन।
काटे नहीं कटते ये दिन मी इंडिया किशोर कुमार – अलीशा चिनॉय
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार जावेद अख्तर ।
दूसरा इंटरलूड सोलो वायोलिन सुनना मत भूलिये।
धड़कन ज़रा रूक गयी है। ..सुरेश वाडकर ….. “प्रहार” १९९१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार मंगेश कुलकर्णी
एक और वाल्ट्ज़ rythm “प्रील्यूड”, ‘इंटरलूड’ और ‘पोस्टल्यूड’ में भी एक शानदार रचना, गुंजयमान ऑर्केस्ट्रा व्यवस्था। पहले ‘इंटरल्यूड’ में एकल वायलिन (स्वर्गीय आदेश श्रीवास्तव द्वारा अभिनीत) को सेल्लो की सराउंड साउंड के साथ आश्चर्यजनक रूप से सिंक्रनाइज़ किया गया है।
ग्रुप वायोलिन जो लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ओर्केस्ट्रा में अन्य म्यूज़िसिअन्स ने बजाया हे।
ऑर्केस्ट्रा में १०० से अधिक वायोलिन्स का उपयोग
बहोश-ओ-हवास मैं दीवाना…..मोहम्मद रफ़ी “नाईट इन लंदन” १९६७
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
सिम्फनी शैली में अद्भुत पश्चिमी ऑर्केस्ट्रा । 51 सेकंड का “प्रील्यूड” बस मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। पहले 33 सेकंड के लिए वायलिन और वायोला का उपयोग।
ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं लता – रफ़ी “इज़्ज़त” १९६८
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार साहिर लुधियानवी
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ पहली बार काम कर रहे साहिर लुधियानवी द्वारा लिखित यह बेहद मधुर युगल गीत है। राग पहाड़ी में इसकी रचना की गई है।
इस गीत का अनूठा पहलू वायलिन/सेलोस का प्रयोग है।
पूरा गीत सिम्फनी वायलिन और सेलोस के आर्केस्ट्रा के इर्द-गिर्द बुना गया है। ‘प्रील्यूड’के साथ-साथ सभी ‘इंटरलूडेस’ अलग-अलग धुनों के साथ सिम्फनी शैली के ऑर्केस्ट्रा में रचे गए हैं।
तारों ने सजके मुकेश। “जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली” १९७१
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी
ग्रुप वायोलीन का सिम्फनी स्टाइल में कंपोज़ किया गया बेहतरीन नगमा. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने इस गाने के लिए १०० से ऊपर वायोलिन्स उपयोग किया.
में शायर तो नहीं शैलेन्द्र सींग “बॉबी” १९७३
संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार आनंद बक्शी।
वास्तव में एक मंत्रमुग्ध करने वाला गाना । इस प्यारे गाने के लिए वाल्ट्ज स्टाइल ऑर्केस्ट्रा को खूबसूरती से सजाया गया है। वायलिन, ईरानी संतूर, गिटार, अकॉर्डियन के साथ-साथ वायोला का उपयोग “प्रस्तावना”, सभी “अंतराल” और “पोस्टल्यूड” में भी शानदार ढंग से किया जाता है …
पश्चिमी शैली की रचना को वाल्ट्ज ताल का उपयोग करके सिम्फनी शैली ऑर्केस्ट्रा को भव्य रूप से सुशोभित व्किया गया है। सराउंड साउंड में सिम्फनी शैली वायलिन के गीत के उपयोग के दौरान, “चारों ओर” में, आनंददायक लगता है।
25 मई, 1998 को लक्ष्मीकांत शांताराम कुडालकर का निधन हो गया। लंबे समय से चल रही रिकॉर्ड तोड़ने वाली, ५० सालसे भी ज्यादा समयसे चलने वाली दोस्ती / साझेदारी का अंत हो गया. प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा अभी भी पूरी दुनिया में लाइव शो करने में सक्रिय हैं। अभी हाल ही में प्यारेलालजी ने स्वर्गीय भारत रत्न लता मंगेशकर के कहने पर “ओम शिवम” नाम की एक सिम्फनी डिजाइन की है, जिसे जर्मनी में बहुत सराहा गया। कृपया जर्मनों द्वारा दिए जा रहे स्टैंडिंग ओवेशन को देखें। (अंतिम दो मिनट स्टैंडिंग ओवेशन)। देखना न भूलें
भगवान श्री कृष्णा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के मधुर गाने
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के गीत सभी पीढ़ियों के लिए हैं, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीत किसी भी स्थिति के लिए उपलब्ध हैं, इसके अलावा लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीत ईद, ईस्टर और क्रिसमस सहित सभी भारतीय त्योहारों के लिए भी उपलब्ध हैं।
भगवान कृष्ण के जन्म के अवसर पर, यह ब्लॉग आपके लिए लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित मधुर गीतों को लेकर आया है जो भगवान कृष्ण की प्रकृति के विभिन्न रंगों को चित्रित करते हैं।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने कई यादगार गीत रिकॉर्ड किए हैं जो भगवान कृष्ण की मिश्रित प्रकृति की विशेषता रखते हैं। संगीत निर्देशकों में, यह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल हैं जिन्होंने हिंदी फिल्मों में भगवान कृष्ण पर सबसे अधिक गीतों की रचना की है। इनमें से कई गीत दुनिया भर के मंदिरों में सुने जा सकते हैं।
समीक्षा के लिए नीचे कुछ गाने (20 नंबर) + 7 सर्वश्रेष्ठ गाने
ओ कन्हैया तेरी मुरली की तान… लता मंगेशकर – मन्ना डे “राजा और रंक” 1968
नंदलाल गोपाल दया कर के … आशा भोंसले – उषा मंगेशकर “साधु और शैतान” 1968।
श्री राधा मोहन ..लता मंगेशकर, मन्ना डे / पंडित नरेंद्र शर्मा.”सत्यम शिवम् सुंदरम” १९७८
तीन बत्ती वाला गोविंदा आला…. मोहम्मद रफ़ी – किशोर कुमार “मुक़ाबला” 1979।
बंसी बजाओ बंसी बजैया…. किशोर कुमार “जुदाई” 1981।
गोकुल की गलियों का ग्वाला… किशोर – आशा – उषा “रास्ते प्यार के” 1982
मोरा रूप रंग … लता मंगेशकर “कत्ल” 1986।
चल हट कल फिर… लता मंगेशकर “नाचे मयूरी” (1987)
नंद का लाला नंद गोपाल … अनुराधा पौडवाल “इंसाफ” (1987)
बंसी वाले ने घर लाई… लता मंगेशकर “संतोष” 1989
कृष्णा आयेगा… अमित कुमार – कविता कृष्णमूर्ति “युगंधर” 1993
कुछ बेहतरीन नग्मे
दय्या रे दय्या यशोदा मैया। “आसरा” 1966
(गायक:- लता मंगेशकर। गीतकार:- आनंद बख्शी)
एक अत्यंत मधुर गीत। लताजी ने ‘बड़ा ssss नटखट है तेरो नंदलाल’ >> शब्द को कितनी खूबसूरती से गाया है। मधुर ढोलक ताल। SITAR और FLUTE को ‘इंटरल्यूड्स’ में शानदार ढंग से निष्पादित किया गया है जो कानों को सुखद क्षण देता है। यह गाना एक्ट्रेस अमीता पर फिल्माया गया है। वीडियो क्लिप में अभिनेता जगदीप, बलराज साहनी, निरूपा रॉय, डेविड को भी देखा जा सकता है।
कान्हा कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार। “शागिर्द” 1967
(गायक:- लता मंगेशकर। गीतकार:- मजरूह सुल्तानपुरी)
लताजी के AALAPS से भरपूर 30 सेकंड के ‘prelude’ को सम्मोहित करता है. साथ-साथ तीखे ढंग से बजाइ गयी सितार कर्णप्रिय लगती है । लताजी ‘कान्हा sssss , कान्हा sssss द्वारा सुंदर टेक ऑफ। सितार, एकल वायलिन के साथ-साथ बांसुरी (भारतीय बांसुरी) के उपयोग के साथ सभी ‘interlude ‘ को बेहतरीन तरीकेसे प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रशंसनीय ढोलक/तबला ताल है। यह धुन सायरा बानो पर फिल्माई गई है जो बेहद खूबसूरत लग रही हैं।
सांझ सवेरे अधरों पे मेरे। “माधवी” 1968
(गायक:- लता मंगेशकर। गीतकार:- आनंद बख्शी)
राग मझ खमाज पर आधारित मधुर और शुद्ध शास्त्रीय गीत। लताजी का प्रतिपादन असाधारण है, विशेष रूप से ‘टेक ऑफ’ ‘सांज सवेरे, अधरों पे मेरे’ को acoustic गिटार के ‘स्ट्रोक’ से सजाया गया है। FLUTE (भारतीय बांसुरी) को ‘मुखड़ा’ में filling के रूप में आकर्षक रूप से प्रयोग किया जाता है। सभी ‘अंतराल’ में SITAR और FLUTE का उपयोग अभूतपूर्व है। सुंदर ढोलक/तबला ताल।
यशोमती मैया से बोले। “सत्यम शिवम सुंदरम” 1978
(गायक:- लता मंगेशकर- मन्नाडे। गीतकार:- पंडित नरेंद्र शर्मा)
तानपुरा, बांसुरी और हारमोनियम के साथ आकर्षक 34 सेकंड ‘प्रस्तावना’ (prelude) का बेहतरीन इस्तेमाल । इसमें आकर्षक ढोलक लय है जो आपकी गर्दन को ‘स्विंग’, हीला देगी। ‘इंटरल्यूड’ में बांसुरी का शानदार ढंग से उपयोग किया जाता है जो बहुत कर्णप्रिय है । लताजी ने ‘राधा क्यों गोरी’ पंक्तियाँ गाते हुए, बाल कलाकार, फिर पद्मिनी कोल्हापुरे को सूट करते हुए, अपनी प्रतिपादन शैली को कितना उज्ज्वल रूप से बदल दिया है। हारमोनियम पर नजर आ सकते हैं अभिनेता कन्हैयालाल.
गाना ‘राग’ भूपाली पर बना है। लताजी ने कितनी भव्यता से ‘आलप्स’ दिया है और ‘जौन तोरे चरण कमल’ (जाऊं तोरे चरण कमल) शब्दों का प्रतिपादन किया है। भारतीय शास्त्रीय शैली के साथ-साथ मधुर ढोलक ताल में एक अद्भुत ऑर्केस्ट्रा व्यवस्था। संतूर, जलतरंग, बांसुरी, विचित्र वीणा, सितार और मंजीरा का उपयोग करके ‘इंटरल्यूड्स’ मधुर ढंग से orchestrate, synchronized और साथ ही विभिन्न धुनों के साथ ओवरलैप किए गए हैं।
यशोदा का नंदलाला ब्रिज का उजाला “संजोग” (1986)
(गायक:- लता मंगेशकर। गीतकार:- अनजान )
इस गाने की खूबी है लताजी का लोरी अंदाज में थिरकना जू जू जू जू, यशोदा का नंदलाला। इसमें एक सुसंगत ढोलक लय है। ‘इंटरल्यूड्स’ JAZZ बांसुरी, सिम्फनी शैली वायलिन और साथ ही सितार के साथ ऑर्केस्ट्रेटेड हैं। जयाप्रदा पर फिल्माया गया गाना है।
(गायक :- लता मंगेशकर – मोहम्मद अजीज। गीतकार:- आनंद बख्शी)
इस गीत का सबसे अच्छा हिस्सा कोरस का उपयोग है और यह पारंपरिक भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों जैसे शैल ध्वनि, मंदिर की घंटी, मंजीरा, मृदंग इत्यादि का उपयोग करके समृद्ध ऑर्केस्ट्रा के साथ सिंक्रनाइज़ेशन है। लताजी के आलाप्स सुनने में बहोतही नाजुक लगते है. टेक ऑफ ‘जमुना के तत पर जब नटखट बंसी’ का प्रतिपादन वाले की’ ‘घुंघरू बेल्स के साथ मिश्रित ढोलक ताल के साथ तालमेल बिठाता है। ‘अंतराल’ में बांसुरी और सितार का अद्भुत प्रयोग। गाना दिलीप कुमार – मनीषा कोइराला पर फिल्माया गया है।
मेरी कोशिश रही है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा कंपोज़ किये गए सारे के सारे गाने शामिल करू. अगर कोई गाना इस ब्लॉग में शामिल नहीं है तो आप इसे ब्लॉग के कमैंट्स मे लिखा सकते हो.
कब और कैसे ? मैं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत का “फैन” बना.
साल 1963 था, मैं 8 साल की उम्र में ग्वालियर में पढ़ रहा था, एक ऐसे ब्राम्हण परिवार में पला बड़ा हुआ जो पौराणिक फिल्मों को छोड़कर फिल्में देखने की अनुमति नहीं देता था. वही समय अवधि जब ‘हरिश्चंद्र तारामती’ और ‘संत ज्ञानेश्वर’ हर दिन और हर शो में हाउसफुल चल रहे थे। दूसरे छोर पर, रेडियो सीलोन, ऑल इंडिया रेडियो और विविध भारती ‘मैं नन्हासा छोटा सा बच्चा हूँ’ (फिल्म ‘हरिश्चंद्र तारामती’ से), ‘ज्योत से ज्योत जगातेचलो’ और ‘एक दो तीन चार’ बज रहे थे। (फिल्म ‘संत ज्ञानेश्वर’ से), ‘पारसमणि’ के संगीतमय हिट के बाद ये दोनों फिल्मे प्रदर्शित हुई थी.
इन फिल्मों के बाल कलाकारों के युग में पले-बढ़े, ऊपर सूचीबद्ध गीतों ने मेरे संगीतमय कानों पर बहुत प्रभाव डाला। और आखिरकार मैंने दोनों फिल्मे देखी। मुझे एक बात स्पष्ट रूप से याद है – ‘ज्योत से ज्योत जगते चलो’ के लिए स्क्रीन पर सिक्कों की बारिश हुई थी।
बिना यह जाने कि यह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत है, ‘ज्योत से ज्योत जगातेचलो’ मेरा पहला पसंदीदा गाना बन गया। लता मंगेशकर की आवाज जिसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया।
“Harischandra Taramati” 1963. Songwriter RashtrKavi Pradeep :: Singer Lata Mangeshkar
दरअसल, मुझे हिंदी फिल्म संगीत में दिलचस्पी मेरी मां की वजह से मिली, जो न केवल अच्छी गायिका हैं बल्कि लता मंगेशकर / तलत महमूद और संगीत निर्देशक अनिल बिस्वास की प्रशंसक भी हैं। पंडित डी. वी. पलुसकर का LP रिकॉर्ड वो हमेशा सुनती थी. वह सारा दिन रेडियो बजाती थी और गाने सुनती थी।
1963-1964 के बीच “संत ज्ञानेश्वर” और “हरिश्चंद्र तारामती” के अलावा, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने निम्नलिखित में से कुछ के लिए शानदार संगीत दिया:
पारसमणि,
सती सावित्री
दोस्ती
आया तूफ़ान
नाग मंदिर
मिस्टर एक्स इन बॉम्बे
हम सब उस्ताद है
इन फिल्मों के गाने बेहद लोकप्रिय हुए और इस तरह मुझे प्रसिद्ध नाम पता चला, हिंदी फिल्म संगीत में “लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल” राष्ट्र की चर्चा बन गया, और हर कोई लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और उनके बेहद लोकप्रिय संगीत के बारे में बात करने लगा।
1965-1966 के दौरान मैंने जैसी फ़िल्मों के लिए मनमोहक रचनाएँ देखीं
लुटेरा
श्रीमान फंटूश
मेरे लाल
आसरा
दिल्लगी
लाडला
मैं बिनाका गीतमाला सुनता था। हर बुधवार को मैं इसे अपनी नोटबुक में रिकॉर्ड करता था और एल.पी. के गानों पर नजर रखता था।
मैं 1967 में पूरी तरह से सम्मोहित हो गया था – नंबर वन संगीत निर्देशक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के लिए सबसे अच्छा वर्ष (अब तक मैं इस धारणा के तहत था कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल एक व्यक्ति हैं और जोड़ी नहीं) .. १९६७ में कई संगीतमय हिट फिल्में रिलीज हुईं जैसे “मिलन”, “नाइट इन लंडन”, “पत्थर के सनम”, ”फ़र्ज़”, “शागिर्द”, ”तक़दीर”, “अनीता” और “जाल”। “मिलन” के संगीत ने देश में धूम मचा दी। जब भारतीय शहर के हर कोने में केवल लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के गाने बज रहे थे. और मैं एक कट्टर प्रशंसक बन गया। 1967 में मुझे एहसास हुआ कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत में जादू है। आज तक, मैं एल.पी. का प्रशंसक रहा हूं। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल संगीत एक टॉनिक की तरह है।
1963 से 1998 के दौरान, बिना किसी रुकावट के, लगातार, मेरे बचपन के दिन, मेरे स्कूल के दिन, मेरे कॉलेज के दिन और भारत के साथ-साथ विदेशों में काम (नौकरी) के वर्ष साल, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के कई यादगार हिट गाने सुनता आ रहा हूँ !
सबसे बड़ा आश्चर्य !!
1990 में, मुझे विदेश में जॉब मिला। मुज़े अपने परिवार के साथ भारत छोड़ना पड़ा. और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की कई हिट फिल्मों के जादू को देखने से चूक गया। आज के विपरीत यह वह दौर था जब मीडिया और प्रौद्योगिकी (internet) की पहुंच सीमित थी। 1993 में छुट्टिया मनाने भारत लौटने के बाद, मैं यह देखकर दंग रह गया और आश्चर्यचकित रह गया कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी अभी भी शिखर पर थी, “खलनायक” गीत ‘चोली के पिछे क्या है’ के साथ …
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल संगीत में कई दिलचस्प बिंदु हैं। उनके गानों में मेलोडी है, ऑर्केस्ट्रा (अधिक तौर पर सिम्फनी) और रिदम में विविधता हैं। अधिकांश धुनें भारतीय हैं, लोकगीत हैं, लेकिन मनमोहक ऑर्केस्ट्रा से साथ मधुर रूप से सजाई गई हैं। अधिकांश “अंतराल” (“मुखड़ा” और “अंतरा” के बीच की संगीतमय झलक) गीत के ‘मुखड़ा’ की तुलना में एक अलग ताल के साथ मिश्रित होते हैं। “प्रस्तावना” (गीतों की शुरुआत से पहले संगीत की झलक), “इंटरल्यूड्स” और “पोस्टलूड्स” में सिम्फनी शैली ऑर्केस्ट्रा है और अधिक दिलचस्प बात यह है कि कोई दोहराव नहीं है।
मेरे जीवन का “सबसे बुरा दिन”!
बचपन से ही लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल दोनों से मिलने की मेरी प्रबल इच्छा थी। 25 मई 1998 को उड़ान से नाइजीरिया के लागोस से आते समय मैंने तय किया था कि मैं भारत की इस यात्रा पर लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल दोनों से मिलूंगा। हालाँकि, मेरे लिए नियति की जगह कुछ और थी और जब मैं भारत में उतरा, तो मुझे लक्ष्मीकांत जी की मृत्यु की खबर मिली और मैं स्तब्ध रह गया। लक्ष्मीकांत से न मिलने का मुझे हमेशा अफसोस रहेगा। लक्ष्मीकांत जी से मिलने का मेरा सपना कभी पूरा नहीं होगा। हालाँकि, मैं प्यारेलालजी से कई बार मिल चूका हूँ और टेलीफोन पर उनके साथ संपर्क में रहता हूँ, भले ही मैं भारत में हू या विदेश में.
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की महिमा वापस लाना !….
आज रेडियो / टी वी / अखबार इत्यादी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा बनाए गए ३५ साल (१९६३-१९९८) के जादू को भूल गए हैं। 503 फिल्में, 160 गायक / गायिका, 72 गीतकार, 2845 गाने। बॉलीवुड संगीत में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का जबरदस्त योगदान। संगीतप्रेमीयो को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के बारे में अधिकसे अधिक जानकारी देने का मेरा हमेशा से ईमानदार प्रयास रहा है और मैं अपने प्रयासको अंत तक जारी रखूंगा।